Bakrid Qurbani
भारत के मुस्लिम बहुल इलाकों में आज भी सड़कों और गलियों में पशुओं के रक्त की धारायें हर साल बकरईद के दिन बहती है। इसके साथ ही वहां मारे गए जानवरों के बचे हुए हिस्सों से उत्पन्न गंदगी सप्ताह तक दुर्गन्ध मचाते रहते हैं और उनकी भटकती आत्मा महीनों तक मनहूसियत बयान करती है। यह सब करते हुए कैसे हमारे पढ़े-लिखे मुसलमान ईदमुबारक कह कर एक दूसरे को धार्मिक सद्भावना का पैगाम दे सकते हैं? चलो ये मान ले कि उन्होंने अपने पारम्परिक धर्म को अपने जानवर-खाने के आदत के अनुरूप कर लिया पर उनकी सारी शिक्षा का देहांत बकरीद के दिन ही क्यों हो जाता है? ईद अपना असली अर्थ तभी ला सकता हैं जब हमारे मुसलमान अपने आदिम इस्लाम के नाम पर जानवरों की हत्या बंद करें।
★ Email: vegan@sudesh.org
No comments:
Post a Comment